जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
गंगा जटा में तुम्हारी, हम प्यासे यहाँ ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। shiv chalisa in hindi तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
रात मेरे सपनो में आया, आ के मुझ को गले लगाया।
किया उपद्रव तारक भारी। more info देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
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